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हंसराज कॉलेज छात्र संघ चुनाव 2019 का माहौल...

"कि जब इन नफ़रतों में ख़ुद तुम्हारा दम लगे घुटने,   चले  आना  हमारी  महफ़िलों  में  ज़िंदगी  जीने" (KV) मैं इस कॉलेज की राजनीति को बदलने आया हूँ इसलिए हमारा मक़सद जीत-हार से पहले एक ख़ूबसूरत लड़ाई है और इसी “अनुपम” कोशिश के तहत हमने अपने पैनल का नाम “नायाब” रखा है।  हमारी टीम के प्रमुख सहयोगी पर ये हमला कॉलेज की पुरानी राजनीति का वहीं पुराना तरीक़ा है जिसे बदलने के लिए हम इस राजनीति में उतरे हैं। मेरे विरोधियों ! एक उम्मीदवार से पहले मैं मुहब्बत का कवि हूँ इसलिए आपकी इस हरकत के बाद भी मुहब्बत को हारने नहीं दूँगा।  ये कॉलेज चुनाव और जीत-हार बस 10-15 दिन का खेल है, कितना बेहतर हो अगर हम इसे नफ़रत के बजाए मुहब्बत की पिच पर खेलें। आपसी विरोध और वैचारिक लड़ाई अपनी जगह है दोस्त ! ख़ूब लड़ेंगे। मैं भी लड़ रहा हूँ, आप भी लड़िए पर उसके साथ ही साथ आलोचना को मुस्करा कर झेलने की ताक़त भी रखिए ताकि चुनाव बाद किसी शाम कहीं बैठ कर चाय पीने का नैतिक बल बचा रह सकें। “दुश्मनी जम करो लेकिन ये गुंजाइश रहे, जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिंदा न हों (बशीर बद्र) ✒ अनुपम

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